थ्युसीडाइड्स

 थ्युसीडाइड्स (Thucydides; यूनानी: Θουκυδίδης, उच्चारण: [tʰuːkydǐdɛːs]; लगभग 460 ई.पू. – लगभग 400 ई.पू.) एक प्राचीन यूनानी इतिहासकार और एथेनियन सेनापति थे। उन्हें विशेष रूप से उनके ऐतिहासिक ग्रंथ पेलोपोनेशियन युद्ध का इतिहास (History of the Peloponnesian War) के लिए जाना जाता है, जिसमें उन्होंने एथेंस और स्पार्टा के मध्य पांचवीं सदी ईसा पूर्व में हुए संघर्ष का विवरण प्रस्तुत किया है। इस ग्रंथ में घटनाएं 431 ई.पू. से लेकर 411 ई.पू. तक दर्ज हैं।


थ्युसीडाइड्स को "वैज्ञानिक इतिहास" (scientific history) का जनक भी माना गया है, क्योंकि उन्होंने इतिहास लेखन में ईश्वर की भूमिका को हटाकर तटस्थता, प्रमाणिकता, और कारण-प्रभाव विश्लेषण की विधि अपनाई। वे राजनीति में यथार्थवाद (political realism) के प्रारंभिक विचारकों में गिने जाते हैं, जो यह मानता है कि राज्यों के बीच संबंध भय और स्वार्थ जैसे कारकों से संचालित होते हैं। उनका लेखन आज भी विश्व के विश्वविद्यालयों, सैन्य अकादमियों और राजनीति के विद्यार्थियों द्वारा अध्ययन किया जाता है। मेलियन संवाद (Melian Dialogue) और परिक्लेस का शोक भाषण (Pericles's Funeral Oration) उनके सबसे चर्चित अंशों में हैं, जो न केवल अंतरराष्ट्रीय संबंध सिद्धांत के लिए बल्कि मानवीय स्वभाव की समझ के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं।


जीवन और पृष्ठभूमि

थ्युसीडाइड्स के जीवन के बारे में आधुनिक इतिहासकारों को अपेक्षाकृत कम जानकारी प्राप्त है, और जो जानकारी उपलब्ध है, वह मुख्यतः उनकी स्वयं की कृति पेलोपोनेशियन युद्ध का इतिहास से प्राप्त होती है। इसमें उन्होंने अपनी राष्ट्रीयता, पितृवंश और जन्मस्थान का उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा है कि वे स्वयं युद्ध में भागीदार थे, प्लेग से पीड़ित हुए थे, और एथेनियन लोकतंत्र द्वारा निर्वासित कर दिए गए थे।

वे स्वयं को एक एथेनियन बताते हैं और उल्लेख करते हैं कि उनके पिता का नाम ओलोरस (Olorus) था तथा वे हालीमूस (Halimous) नामक डेम (deme) से संबंधित थे। एक विवादास्पद किंवदंती के अनुसार, जब वे लगभग 10–12 वर्ष के थे, तब वे अपने पिता के साथ एथेंस के अगोरा (Agora) में गए थे और वहाँ इतिहासकार हेरोडोटस का भाषण सुना। कहा जाता है कि भाषण सुनकर वे आनंद से रो पड़े और इतिहास को अपना जीवन-ध्येय मान लिया। हालांकि यह विवरण बाद की ग्रीक या रोमन परंपरा से जुड़ा माना जाता है।

थ्युसीडाइड्स ने प्लेग से ग्रस्त होने की बात भी स्वयं लिखी है, जिससे परिक्लेस समेत अनेक एथेनियन नागरिकों की मृत्यु हुई थी। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि उनके पास थ्रेस (Thrace) के स्काप्टे हाइली (Scapte Hyle) में सोने की खदानें थीं, जिनसे उन्हें पर्याप्त आर्थिक संसाधन प्राप्त हुए। इसी संपन्नता ने उन्हें निर्वासन के दौरान इतिहास लेखन और गहन अध्ययन के लिए समय और अवसर प्रदान किया।

424 ई.पू. में उन्हें थासोस (Thasos) के पास स्थित क्षेत्र में जनरल (strategos) नियुक्त किया गया था, जहाँ उन्होंने एंफीपोलिस की लड़ाई के दौरान हस्तक्षेप करने का प्रयास किया, परंतु जब वे पहुँचे तब तक नगर पर स्पार्टनों का नियंत्रण हो चुका था। इस विफलता के कारण उन्हें एथेंस से निर्वासित कर दिया गया। उन्होंने स्वयं लिखा है कि इस निर्वासन ने उन्हें दोनों पक्षों के दृष्टिकोण से युद्ध को समझने का अवसर दिया और उन्होंने युद्ध के आरंभ में ही इसका इतिहास लिखना आरंभ कर दिया, यह मानते हुए कि यह यूनानियों के मध्य हुआ अब तक का सबसे बड़ा युद्ध होगा।

उनके पिता ओलोरस का नाम थ्रेस की राजशाही से जुड़ा था, जिससे यह संकेत मिलता है कि उनका परिवार संभवतः मिल्टियाडेस और उनके पुत्र सीमॉन जैसे पुराने एथेनियन अभिजात वर्ग से संबंधित रहा होगा। ऐसा भी माना जाता है कि उनका परिवार थ्रेस में एक बड़ी संपत्ति का स्वामी था, जिसमें सोने की खानें शामिल थीं। इस कारण वे निर्वासन में भी आर्थिक दृष्टि से संपन्न और सामाजिक रूप से प्रभावशाली बने रहे।

उनकी मृत्यु के संबंध में मतभेद हैं। कुछ स्रोतों के अनुसार उन्हें एथेंस लौटने की अनुमति दी गई थी, परन्तु मार्ग में उनकी हत्या कर दी गई। प्लूटार्क के अनुसार, उनकी अस्थियाँ सीमॉन के पारिवारिक मकबरे में रखी गईं, यद्यपि कुछ अन्य स्रोतों में यह भी कहा गया है कि उनका एक और समाधि स्थल थ्रेस में था।

निर्वासन और इतिहास लेखन

थ्युसीडाइड्स को एंफीपोलिस (Amphipolis) नगर को स्पार्टनों से बचाने में विफल रहने के कारण एथेंस से निर्वासित कर दिया गया। उन्होंने स्वयं लिखा है कि वे इस युद्धकाल में जीवित थे, घटनाओं को समझने की आयु में थे, और सत्य जानने की गंभीर इच्छा रखते थे। अपने निर्वासन के 20 वर्षों के दौरान, वे मुख्य रूप से पेलोपोनेशियन पक्ष (Peloponnesian side) के साथ रहे, जिससे उन्हें युद्ध के दोनों पक्षों की राजनीतिक और सैन्य गतिविधियों को निकटता से समझने और विश्लेषण करने का अवसर मिला।

उन्होंने लिखा:

"मैंने इस युद्ध की पूरी अवधि को जीवित रहते हुए अनुभव किया, उसे समझने लायक उम्र में था और घटनाओं पर ध्यान दिया ताकि मैं उनके बारे में सटीक सत्य जान सकूं। एंफीपोलिस में मेरे असफल सैन्य अभियान के बाद मुझे देश से बीस वर्षों के लिए निर्वासित कर दिया गया; और अपने निर्वासन के कारण मैं दोनों पक्षों की गतिविधियों को विशेष रूप से निकटता से देख सका।"

यह निर्वासन, जिसे पारंपरिक रूप से एक दंड के रूप में देखा जाता है, वास्तव में थ्युसीडाइड्स के लिए एक ऐसा अवसर बन गया, जिसने उन्हें निरपेक्ष तटस्थता के साथ इतिहास लिखने का समय, स्वतंत्रता और व्यापक दृष्टिकोण प्रदान किया। उन्होंने अपने इतिहास लेखन की शुरुआत युद्ध के प्रारंभ के साथ ही कर दी थी, यह सोचकर कि यह युद्ध यूनानियों के बीच अब तक का सबसे व्यापक और महत्वपूर्ण युद्ध होगा।

थ्युसीडाइड्स ने लिखा:

"थ्युसीडाइड्स, एक एथेनियन, ने पेलोपोनेशियनों और एथेनियनों के बीच युद्ध का इतिहास लिखा, युद्ध के आरंभ के साथ ही, यह विश्वास करते हुए कि यह युद्ध महान होगा और किसी भी पूर्ववर्ती युद्ध से अधिक उल्लेखनीय होगा।"

उनका उद्देश्य केवल घटनाओं का विवरण देना नहीं था, बल्कि एक ऐसा लेख तैयार करना था जो "सभी समय के लिए एक संपत्ति" (a possession for all time) बन सके। यही कारण है कि उनका लेखन केवल तत्कालीन ग्रीस तक सीमित न होकर आज भी युद्ध अध्ययन, राजनीति विज्ञान और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन में मान्य और प्रासंगिक माना जाता है।

उनका इतिहास 411 ई.पू. में अचानक समाप्त हो जाता है। परंपरागत रूप से इसे उनकी मृत्यु का परिणाम माना गया है, हालाँकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह कार्य अधूरा रह गया था। इतिहासकारों का यह भी अनुमान है कि अपने निर्वासन के दौरान वे स्काप्टे हाइली स्थित अपने संपत्ति स्थल पर स्थायी रूप से रहने लगे थे और वहीं से उन्होंने इतिहास लेखन और अनुसंधान कार्य में स्वयं को पूरी तरह समर्पित कर दिया था।

लेखन शैली और दृष्टिकोण

थ्युसीडाइड्स की लेखन शैली को प्राचीन इतिहास में एक निर्णायक मोड़ के रूप में देखा जाता है। उन्होंने इतिहास को केवल घटनाओं का विवरण भर नहीं माना, बल्कि उसे विश्लेषण, प्रमाण और तटस्थता के आधार पर समझने और प्रस्तुत करने का माध्यम बनाया। उनकी विशेषता यह थी कि उन्होंने ईश्वरीय हस्तक्षेप, दैवी कारणों और धार्मिक व्याख्याओं को इतिहास से अलग कर दिया और केवल मानव स्वभाव, राजनीतिक हितों और रणनीतिक कारणों पर ध्यान केंद्रित किया।

थ्युसीडाइड्स ने अपनी रचना में स्पष्ट किया कि उन्होंने प्रत्यक्षदर्शी गवाहियों, युद्ध में भाग लेने वालों से की गई बातचीत, और उपलब्ध लिखित दस्तावेजों के आधार पर घटनाओं को प्रस्तुत किया। उनकी कार्यप्रणाली ने उन्हें "वैज्ञानिक इतिहास" (Scientific History) के जनक के रूप में स्थापित किया।

उनका सबसे विशिष्ट रचनात्मक तत्व उनकी औपचारिक भाषणों (Formal Speeches) की शैली थी, जो उन्होंने घटनाओं के प्रमुख पात्रों के लिए लिखे। थ्युसीडाइड्स ने स्वयं स्वीकार किया कि ये भाषण वास्तविक शब्दों की पुनरावृत्ति नहीं हैं, बल्कि उस परिस्थिति के अनुसार वे बातें प्रस्तुत करते हैं जो उस समय बोलने वाले को कहना चाहिए था। उनके अनुसार, यदि इन भाषणों को वे न लिखते, तो संभवतः उस विचार और मंतव्य को भविष्य में कोई जान न पाता।

उनकी सबसे प्रसिद्ध भाषण शैली की रचना परिक्लेस का शोक भाषण (Pericles's Funeral Oration) है, जिसमें उन्होंने युद्ध में मरे सैनिकों के सम्मान के साथ-साथ एथेनियन लोकतंत्र की प्रशंसा की। उसी खंड के तुरंत बाद उन्होंने एथेंस में फैली प्लेग का भयावह चित्रण प्रस्तुत किया, जिससे मानव जीवन की नश्वरता और सामाजिक व्यवस्था के टूटने का यथार्थवादी विवरण मिलता है। इन दोनों दृश्यों की समीपता एक गहरे कलात्मक और दार्शनिक प्रभाव का निर्माण करती है।

थ्युसीडाइड्स ने कलाओं, साहित्य, सामाजिक पृष्ठभूमि या व्यक्तिगत भावनाओं पर विशेष चर्चा नहीं की। उन्होंने केवल राजनीतिक, सैन्य और मानवीय संघर्षों पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे उनका इतिहास अधिक केंद्रित और विश्लेषणात्मक बनता है।

उनकी दृष्टि यह थी कि इतिहास को न तो सौंदर्य की दृष्टि से लिखा जाना चाहिए और न ही मनोरंजन के उद्देश्य से, बल्कि उसे ऐसे लिखा जाना चाहिए कि वह सभी समयों में प्रासंगिक रहे। इसीलिए उन्होंने अपनी कृति को “सदैव के लिए एक संपत्ति” (a possession for all time) कहा, न कि “किसी प्रतियोगिता में उच्चारण के लिए”।

प्रमुख विचार

थ्युसीडाइड्स के विचार उनकी रचना पेलोपोनेशियन युद्ध का इतिहास में प्रत्यक्ष रूप से परिलक्षित होते हैं। उनका दृष्टिकोण मानवीय अनुभव, राजनीति और युद्ध के यथार्थपरक विश्लेषण पर आधारित था। वे यह मानते थे कि युद्ध, महामारी, और राजनीतिक संकटों जैसी परिस्थितियाँ मानव स्वभाव को उजागर करती हैं—और इसीलिए इतिहास इन स्थितियों के माध्यम से मनुष्यता की परीक्षा का साधन बनता है।

उनकी मान्यता थी कि राजनीतिक घटनाओं के पीछे मुख्यतः भय (fear), स्वार्थ (self-interest), और सत्ता की इच्छा (desire for power) जैसी प्रवृत्तियाँ कार्य करती हैं। यही कारण है कि उन्हें राजनीतिक यथार्थवाद (Political Realism) के प्रारंभिक प्रवर्तकों में गिना जाता है। उनके अनुसार, राज्यों और व्यक्तियों का आचरण नैतिक मूल्यों की तुलना में व्यावहारिक आवश्यकताओं से अधिक संचालित होता है।

थ्युसीडाइड्स की लेखनी में उनके कुछ प्रमुख दार्शनिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण निम्नलिखित हैं:

  1. मानव स्वभाव का यथार्थवादी चित्रण:
    वे मानते थे कि जब भी समाज पर संकट आता है—चाहे वह युद्ध हो, प्लेग हो या गृहयुद्ध—मानव स्वभाव अपनी मूल प्रवृत्तियों (लोभ, भय, हिंसा, स्वार्थ) में प्रकट होता है। उन्होंने कोरकीरा (Corcyra) के गृहयुद्ध का वर्णन करते हुए लिखा: "युद्ध एक कठोर शिक्षक है" (πόλεμος βίαιος διδάσκαλος)।

  2. नेतृत्व और लोकतंत्र के प्रति दृष्टिकोण:
    थ्युसीडाइड्स ने परिक्लेस जैसे नेता की सराहना की, जिन्होंने जनतंत्र को संतुलन और दिशा दी, परंतु वे उन जननेताओं (demagogues) की आलोचना करते हैं जिन्होंने जनता को भड़काकर अराजक निर्णय कराए। वे मानते थे कि लोकतंत्र तभी उपयोगी है जब वह एक योग्य और विवेकशील नेता द्वारा नियंत्रित हो।

  3. भाग्य और विवेक के बीच संघर्ष:
    उन्होंने ऐतिहासिक घटनाओं में भाग्य (fortune) और मानव निर्णय (judgment) की भूमिका को तुलनात्मक रूप से देखा। यद्यपि उनका दृष्टिकोण तर्कशील और वैज्ञानिक था, पर वे स्वीकार करते थे कि कई बार परिस्थितियाँ मनुष्य के नियंत्रण से परे होती हैं।

  4. नैतिकता का निरपेक्ष नहीं, सापेक्ष दृष्टिकोण:
    थ्युसीडाइड्स के अनुसार, नैतिकता स्थायी या सार्वभौमिक नहीं होती, बल्कि वह परिस्थिति और दृष्टिकोण पर निर्भर करती है। मेलियन संवाद इसका प्रमुख उदाहरण है, जहाँ शक्ति और न्याय के बीच संघर्ष को शुष्क तर्कों से प्रस्तुत किया गया है।

  5. इतिहास का उद्देश्य:
    उन्होंने इतिहास को केवल भूतकाल की घटनाओं का संग्रह नहीं माना, बल्कि भविष्य के लिए एक शिक्षाप्रद साधन बताया। उनका उद्देश्य था—ऐसी कृति प्रस्तुत करना जो आने वाली पीढ़ियों को मानव व्यवहार और सत्ता के ढांचे की समझ दे सके।

थ्युसीडाइड्स का यह दार्शनिक दृष्टिकोण उन्हें न केवल एक इतिहासकार बनाता है, बल्कि एक राजनीतिक सिद्धांतकार और मानव स्वभाव के गहन विश्लेषक के रूप में भी स्थापित करता है।


पेलोपोनेशियन युद्ध का इतिहास

थ्युसीडाइड्स की प्रमुख कृति पेलोपोनेशियन युद्ध का इतिहास (History of the Peloponnesian War) यूनानी शहर-राज्यों, विशेषतः एथेंस और स्पार्टा के बीच हुए गहन संघर्ष का विवरण प्रस्तुत करती है। यह ग्रंथ न केवल ऐतिहासिक घटनाओं का क्रमबद्ध वर्णन है, बल्कि एक गंभीर राजनीतिक, सामाजिक और मानवशास्त्रीय विश्लेषण भी है।

थ्युसीडाइड्स ने युद्ध के प्रारंभ, अर्थात 431 ईसा पूर्व से ही लेखन प्रारंभ कर दिया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह युद्ध, अन्य सभी पूर्ववर्ती युद्धों की तुलना में अधिक व्यापक और महत्वपूर्ण होगा। उन्होंने लिखा:

"थ्युसीडाइड्स, एक एथेनियन, ने पेलोपोनेशियनों और एथेनियनों के बीच युद्ध का इतिहास लिखा, युद्ध के उसी क्षण से जब यह प्रारंभ हुआ, यह सोचकर कि यह अब तक का सबसे महान युद्ध होगा और इसके विवरण की अधिक आवश्यकता होगी।"

उनकी यह कृति कुल आठ खंडों में विभाजित है, और इसमें घटनाएं वर्ष 411 ईसा पूर्व तक दर्ज हैं। अंतिम सात वर्षों का विवरण ग्रंथ में अनुपस्थित है, जिसे सामान्यतः थ्युसीडाइड्स की मृत्यु के कारण अधूरा माना जाता है।

ग्रंथ की विशेषताएँ:

  1. स्रोत और पद्धति
    थ्युसीडाइड्स ने ऐतिहासिक घटनाओं को संकलित करते समय प्रत्यक्षदर्शी गवाहियों, भागीदारों के साक्षात्कार और दस्तावेज़ी साक्ष्यों का प्रयोग किया। वे अपनी तटस्थता, वैज्ञानिक जांच और तथ्यात्मकता पर गर्व करते थे।

  2. भाषणों का साहित्यिक प्रयोग
    ग्रंथ की एक विशिष्ट विशेषता यह है कि इसमें प्रमुख पात्रों द्वारा दिए गए औपचारिक भाषण सम्मिलित हैं। थ्युसीडाइड्स ने स्वयं स्वीकार किया कि ये भाषण यथार्थ रूप से उद्धृत नहीं हैं, बल्कि उन्होंने उनमें वह कहा है जो परिस्थिति में कहा जाना उपयुक्त होता। यह शैली उस समय की राजनीतिक और सामाजिक विचारधारा को उजागर करती है।

  3. प्रसिद्ध प्रसंग

    • परिक्लेस का अंतिम संस्कार भाषण (Funeral Oration): जिसमें एथेनियन लोकतंत्र और समाज की प्रशंसा की गई है।

    • एथेंस की प्लेग का वर्णन: जिसमें भयावह मानवीय और सामाजिक स्थिति को अत्यंत यथार्थवादी और प्रभावशाली ढंग से दर्शाया गया है।

    • मेलियन संवाद (Melian Dialogue): एक दार्शनिक और राजनीतिक बहस जिसमें न्याय और शक्ति के बीच टकराव को प्रस्तुत किया गया है।

  4. भाषा और शैली
    थ्युसीडाइड्स की भाषा गूढ़, विचारप्रधान और गंभीर है। उन्होंने सौंदर्य या भावनात्मक विवरण की तुलना में विश्लेषण और निष्पक्षता को प्राथमिकता दी। वे घटनाओं को एक व्यापक नैतिक या धार्मिक तंत्र में नहीं, बल्कि व्यावहारिक परिप्रेक्ष्य में देखते हैं।

  5. पाठ्य-उपयोग और प्रभाव
    यह ग्रंथ आज भी विश्वविद्यालयों, सैन्य कॉलेजों और राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रमों में पढ़ाया जाता है। इसका उपयोग अंतरराष्ट्रीय संबंधों, सैन्य रणनीति और मानव स्वभाव के अध्ययन के लिए किया जाता है। यह उन दुर्लभ ग्रंथों में से है, जिन्हें “सदैव की संपत्ति” (a possession for all time) कहा गया है।

इस ग्रंथ की शैली, विषयवस्तु और दृष्टिकोण ने इतिहास लेखन की दिशा ही बदल दी। थ्युसीडाइड्स की यह रचना केवल अतीत का दस्तावेज़ नहीं, बल्कि एक दर्पण है जिसमें सत्ता, स्वार्थ और युद्ध में उलझे मानव समाज को स्पष्ट देखा जा सकता है।



आलोचना और प्रभाव

थ्युसीडाइड्स की रचना पेलोपोनेशियन युद्ध का इतिहास न केवल प्राचीन इतिहासलेखन की एक उच्चतम उपलब्धि मानी जाती है, बल्कि आधुनिक इतिहास, राजनीति विज्ञान, और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भी इसका गहरा प्रभाव देखा गया है। उनके लेखन की निष्पक्षता, तर्कशीलता, और सत्ता-राजनीति के यथार्थवादी विश्लेषण ने उन्हें परवर्ती विद्वानों, विचारकों और नेताओं के बीच व्यापक सम्मान दिलाया।

प्राचीन और शास्त्रीय युग में प्रभाव

थ्युसीडाइड्स ने जिस पद्धति से इतिहास लिखा, उसने हेरोडोटस जैसे पूर्ववर्ती इतिहासकारों से उन्हें स्पष्ट रूप से अलग कर दिया। हेरोडोटस जहां सांस्कृतिक, भौगोलिक और नैतिक कहानियों में रुचि रखते थे, वहीं थ्युसीडाइड्स ने केवल राजनीतिक और सैन्य घटनाओं पर ध्यान केंद्रित किया। बाद के यूनानी और रोमन इतिहासकार जैसे पॉलीबियस, प्लूटार्क, और डियोडोरस ने उन्हें सत्यनिष्ठ इतिहास का आदर्श माना।

उनके विचारों का प्रभाव उनके उत्तराधिकारी ज़ेनोफ़न पर भी पड़ा, यद्यपि कुछ आधुनिक विद्वान ज़ेनोफ़न की हेल्लेनीका (Hellenica) को थ्युसीडाइड्स की शैली का सीधा विस्तार मानने में संदेह प्रकट करते हैं।

मध्यकाल और पुनर्जागरण काल में स्थिति

मध्य युग में, ग्रीक भाषा की जानकारी के पतन के कारण पश्चिमी यूरोप में थ्युसीडाइड्स लगभग विस्मृति में चले गए, यद्यपि बीजान्टिन दुनिया में उनकी कृतियाँ पढ़ी जाती रहीं। उनका पुनर्प्रकाशन 15वीं सदी में हुआ जब मानवीय विचारधारा (humanism) के उत्थान के साथ उनका लैटिन में अनुवाद हुआ और ग्रीक पाठ पहली बार मुद्रित हुआ।

हालाँकि पुनर्जागरण युग के राजनीतिक चिंतकों जैसे मैकियावेली ने अधिक रुचि पॉलीबियस में दिखाई, परंतु कई विद्वानों ने थ्युसीडाइड्स और मैकियावेली के बीच यथार्थवादी दृष्टिकोण की समानता की ओर संकेत किया है।

आधुनिक युग में प्रभाव

17वीं सदी में थॉमस हॉब्स ने थ्युसीडाइड्स का अंग्रेजी में अनुवाद किया और उन्हें पश्चिमी राजनीतिक यथार्थवाद (Political Realism) का आधारशिला निर्माता माना। हॉब्स, मैकियावेली, और थ्युसीडाइड्स को सामूहिक रूप से ऐसे चिंतकों के रूप में देखा गया जिन्होंने राज्य की नीति को नैतिकता से अधिक शक्ति और स्वार्थ के सिद्धांत पर आधारित किया।

19वीं और 20वीं सदी के इतिहासकारों जैसे लियोपोल्ड वॉन रांके, टॉमस मैकाले, और एडुआर्ड मेयर ने थ्युसीडाइड्स की कार्यप्रणाली को आधुनिक इतिहास लेखन का मानक घोषित किया। नीत्शे ने उन्हें “मानव स्वभाव का अंतिम और निष्पक्ष विश्लेषक” कहा।

अंतरराष्ट्रीय राजनीति और सैन्य अध्ययन में योगदान

20वीं सदी के दौरान, विशेषतः शीत युद्ध के समय, थ्युसीडाइड्स की कृति ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति और सुरक्षा अध्ययन पर गहरा प्रभाव डाला। हंस मॉर्गेन्थाउ, लियो स्ट्रॉस और ई.एच. कार जैसे सिद्धांतकारों ने उन्हें यथार्थवादी कूटनीति का आदर्श माना।

मेलियन संवाद को अंतरराष्ट्रीय संबंधों के यथार्थवादी सिद्धांतों के मूल स्रोतों में गिना जाता है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि जब शक्ति और नैतिकता का संघर्ष होता है, तो निर्णायक भूमिका शक्ति की होती है।

समकालीन अध्ययन और सांस्कृतिक प्रभाव

आज थ्युसीडाइड्स की कृतियाँ दुनिया भर की सैन्य अकादमियों, राजनीतिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती हैं। अमेरिका के नेवल वॉर कॉलेज और अन्य प्रतिष्ठानों में उनका अध्ययन आवश्यक माना गया है।

जहाँ थ्युसीडाइड्स को विश्लेषणात्मक और रणनीतिक दृष्टिकोण का प्रतीक माना गया, वहीं हेरोडोटस को सांस्कृतिक संवेदना और मानविकी दृष्टिकोण का प्रतिरूप माना गया। यह द्वंद्व आज भी इतिहास लेखन की दो अलग प्रवृत्तियों—तथ्यात्मक विश्लेषण और नैतिक दृष्टि—में देखा जा सकता है।



थ्युसीडाइड्स बनाम हेरोडोटस

थ्युसीडाइड्स और उनके पूर्ववर्ती हेरोडोटस, पश्चिमी इतिहासलेखन की दो प्रमुख और भिन्न धाराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। यद्यपि दोनों ने ग्रीक इतिहास को अमूल्य योगदान दिया, उनकी विषयवस्तु, दृष्टिकोण, और पद्धति में गहरे अंतर हैं। इनकी तुलना अक्सर "ऐतिहासिक कथा" और "वैज्ञानिक इतिहास" के मध्य अंतर के रूप में की जाती है।

दृष्टिकोण और उद्देश्य

हेरोडोटस को प्रायः "इतिहास का पिता" कहा जाता है। उन्होंने पर्शियन युद्धों का विस्तृत विवरण दिया और साथ ही विविध संस्कृतियों, परंपराओं, और किंवदंतियों को संकलित किया। हेरोडोटस का उद्देश्य न केवल घटनाओं का विवरण देना था, बल्कि मानव समाज के विविध स्वरूपों को प्रस्तुत करना और उनसे नैतिक शिक्षा प्रदान करना भी था।

थ्युसीडाइड्स, इसके विपरीत, केवल राजनीतिक और सैन्य घटनाओं पर केंद्रित रहे। उनका दृष्टिकोण विश्लेषणात्मक, यथार्थवादी और नैतिकता-निरपेक्ष था। उन्होंने लिखा कि उनका इतिहास “किसी पुरस्कार के लिए नहीं, बल्कि सदा के लिए उपयोगी संपत्ति” होगा। वे नैतिक उपदेशों या पारंपरिक कथाओं से दूर रहे और केवल उस पर ध्यान केंद्रित किया जिसे वे प्रमाण, तर्क और प्रत्यक्षदर्शिता से सत्यापित कर सकते थे।

सामग्री और शैली

हेरोडोटस की रचना Histories में घटनाओं के साथ-साथ भूगोल, मानवविज्ञान, और सांस्कृतिक विवरण शामिल हैं। वे अक्सर विरोधाभासी कहानियाँ प्रस्तुत करते हैं और निर्णय पाठकों पर छोड़ते हैं। वे यह स्वीकार करते हैं कि उन्होंने जो सुना उसे उसी रूप में दर्ज किया।

थ्युसीडाइड्स, दूसरी ओर, केवल उन्हीं घटनाओं को दर्ज करते हैं जो प्रत्यक्षदर्शियों और साक्ष्यों पर आधारित हों। वे विवरण की प्रामाणिकता की पुष्टि करने का प्रयास करते हैं और प्रत्येक घटना के पीछे कारण और प्रभाव की श्रृंखला स्थापित करते हैं।

नैतिकता और ईश्वर

हेरोडोटस के इतिहास में ईश्वरीय हस्तक्षेप, भाग्य और धर्म का उल्लेख प्रमुखता से आता है। उन्होंने मानवीय अहंकार (hubris) को दैवी दंड का कारण बताया।

थ्युसीडाइड्स ने ईश्वर या भाग्य का कोई उल्लेख नहीं किया। उनके लिए सभी घटनाएं मानवीय निर्णयों, स्वार्थ, भय और सत्ता की इच्छा से प्रेरित थीं। उन्होंने नैतिकता को भी एक सापेक्ष मूल्य माना, जो शक्ति संतुलन और व्यावहारिक राजनीति से प्रभावित होता है।

ऐतिहासिक प्रभाव

हेरोडोटस ने जहां सामाजिक, सांस्कृतिक और मानविकी दृष्टिकोण से इतिहास को समृद्ध किया, वहीं थ्युसीडाइड्स ने इतिहास को एक वैज्ञानिक अनुशासन के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया। हेरोडोटस की परंपरा साहित्य, नृविज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में आगे बढ़ी, जबकि थ्युसीडाइड्स की परंपरा राजनीति, रणनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में प्रभावी रही।

आधुनिक दृष्टिकोण

आधुनिक युग में दोनों इतिहासकारों को उनके-अपने संदर्भों में सराहा गया है। थ्युसीडाइड्स को सैन्य और राजनीतिक यथार्थवाद के जनक के रूप में पढ़ा जाता है, जबकि हेरोडोटस को संस्कृतियों की समझ और मानव संवेदना के इतिहासकार के रूप में जाना जाता है।

कुछ विद्वानों के अनुसार, थ्युसीडाइड्स ने इतिहास को कैसे हुआ (how it happened) पर केंद्रित किया, जबकि हेरोडोटस ने यह भी पूछा कि क्यों हुआ (why it happened) और इसका क्या अर्थ है


==संदर्भ==

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